28 May, 2025
सिंधु जल संधि का निलंबन
Thu 24 Apr, 2025
संदर्भ:
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 नागरिकों की मौत के बाद भारत ने सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) को निलंबित कर दिया है। यह भारत-पाक संबंधों में जल-साझेदारी के क्षेत्र में अब तक की सबसे गंभीर कूटनीतिक कार्रवाई मानी जा रही है।
सिंधु जल संधि के बारे में
विषय | विवरण |
हस्ताक्षर तिथि | 19 सितंबर 1960 |
पक्षकार | भारत और पाकिस्तान |
मध्यस्थ | विश्व बैंक (तब: अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक) |
उद्देश्य | सिंधु नदी प्रणाली से जल का साझा उपयोग |
शामिल नदियाँ | पश्चिमी नदियाँ: सिंधु, झेलम, चिनाब
पूर्वी नदियाँ: रावी, ब्यास, सतलुज |
जल वितरण
|
पाकिस्तान को: पश्चिमी नदियाँ (80%)
भारत को: पूर्वी नदियाँ (20%) |
भारत के अधिकार | घरेलू, कृषि और जलविद्युत उपयोग के लिए सीमित और गैर-उपभोगी उपयोग |
निगरानी तंत्र | स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission - PIC) |
समझौते की प्रकृति | विवाद समाधान हेतु तकनीकी चर्चा, निरीक्षण, डेटा आदान-प्रदान |
भारत का यह कदम क्यों महत्वपूर्ण है?
- कूटनीतिक दबाव का साधन: पाकिस्तान-प्रेरित आतंकवाद के विरुद्ध भारत का जल एक रणनीतिक हथियार बन सकता है।
- अंतरराष्ट्रीय प्रभाव: विश्व बैंक द्वारा संरक्षित इस संधि के निलंबन से वैश्विक जल-सहयोग पर असर संभव।
- स्वदेशी जल उपयोग की दिशा में बढ़ता कदम: भारत पश्चिमी नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं (जैसे किशनगंगा, राटले) को गति दे सकता है।
भारत के इस कदम वैधता
- हां, संधि के अनुच्छेद XII के अनुसार, एक साल की सूचना देकर कोई भी पक्ष संधि समाप्त कर सकता है। यद्यपि 63 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है।
भारत के लिए प्रभाव:
- पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव बढ़ेगा
- भारत का आंतरिक जल उपयोग बढ़ेगा
- संभवतः अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आलोचना हो सकती है
- सिंधु, झेलम व चिनाब की धारा पाकिस्तान में घट सकती है
सिंधु नदी प्रणाली का भौगोलिक महत्व:
- स्रोत: तिब्बत से निकलती है
- भारत में लद्दाख क्षेत्र से होकर गुजरती है
- मुख्य नदियाँ: सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास, सतलुज
- भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए सिंचाई व जलविद्युत का प्रमुख स्रोत
भारत की अन्य प्रमुख संधियाँ
संधि | देश | विषय | वर्ष |
ताशकंद समझौता | पाकिस्तान (USSR मध्यस्थता) | 1965 युद्ध के बाद शांति समझौता | 1966 |
शिमला समझौता | पाकिस्तान | 1971 युद्ध के बाद द्विपक्षीय समझौता | 1972 |
गंगा जल संधि | बांग्लादेश | गंगा नदी जल बंटवारा | 1996 |
महाकाली संधि | नेपाल | महाकाली नदी जल बंटवारा | 1996 |
भारत-भूटान ऊर्जा सहयोग | भूटान | जलविद्युत परियोजनाएं (ताला, पुनात्सांगचू) | 2000s से जारी |
भूमि सीमा समझौता | बांग्लादेश | भारत-बांग्लादेश सीमा का निर्धारण | 2015 |
भारत- | श्रीलंका | समुद्री संधि श्रीलंका समुद्री सीमा और कचथीवु द्वीप | 1974 और 1976 |
निष्कर्ष:
भारत का यह कदम केवल आतंक के विरुद्ध चेतावनी नहीं, बल्कि भारत की जल नीति को एक रणनीतिक अस्त्र में बदलने की दिशा है। यह संधि का निलंबन भारत की सॉवरेन शक्तियों के प्रयोग और कूटनीतिक रुख में बदलाव को दर्शाता है।
जैसे-जैसे जल संकट और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ेगा, जल संधियाँ कूटनीतिक सौदेबाजी के हथियार बनेंगी। आने वाले समय में भारत का यह कदम अन्य द्विपक्षीय समझौतों पर भी असर डाल सकता है।