01 May, 2025
भारत में कैप-एंड-ट्रेड नीति
Thu 17 Apr, 2025
संदर्भ :
गुजरात के सूरत शहर में लागू किया गया कैप-एंड-ट्रेड सिस्टम (Emissions Trading Scheme - ETS) विश्व का पहला ऐसा बाजार है जो कण प्रदूषण (Particulate Matter) पर केंद्रित है। हाल ही में The Quarterly Journal of Economics में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, इस योजना से प्रदूषण में 20–30% की कमी आई है और उद्योगों की अनुपालन लागत में 11% की बचत हुई है।
क्या है कैप-एंड-ट्रेड प्रणाली?
कैप-एंड-ट्रेड एक बाजार-आधारित पर्यावरणीय नीति है, जिसमें सरकार उद्योगों द्वारा उत्सर्जन की अधिकतम सीमा (Cap) तय करती है और इसके अनुसार उन्हें प्रदूषण परमिट (Permits) जारी किए जाते हैं।
- जो उद्योग निर्धारित सीमा से कम प्रदूषण करते हैं, वे अपना अतिरिक्त परमिट बेच सकते हैं।
- जो उद्योग ज्यादा उत्सर्जन करते हैं, वे परमिट खरीद कर अनुपालन कर सकते हैं।
- यह प्रणाली उद्योगों को प्रदूषण कम करने के लिए प्रोत्साहित करती है और साफ तकनीकों में निवेश को बढ़ावा देती है।
कैसे काम करता है यह मॉडल?
1. उत्सर्जन सीमा तय करना: पर्यावरणीय लक्ष्यों के अनुसार कुल प्रदूषण सीमा तय की जाती है।
2. परमिट वितरण:
- अतीत के उत्सर्जन के आधार पर मुफ्त में वितरण (Grandfathering)।
- कुछ परमिट नीलामी द्वारा दिए जाते हैं।
3. व्यापार व्यवस्था:
- जो कंपनियाँ सस्ते में प्रदूषण कम कर सकती हैं, वे परमिट बेचती हैं।
- अन्य कंपनियाँ परमिट खरीदकर अनुपालन करती हैं।
4. अनुपालन में विफलता पर दंड:
- जो उद्योग पर्याप्त परमिट नहीं रखते, उन्हें आर्थिक दंड देना पड़ता है।
सूरत ईटीएस की विशेषताएँ:
- 2019 में शुरू, 317 उद्योगों को शामिल किया गया।
- सभी उद्योगों पर CEMS (Continuous Emission Monitoring System) लगाना अनिवार्य।
- साप्ताहिक नीलामी द्वारा पारदर्शिता सुनिश्चित की गई।
- कैप को 280 टन/माह से घटाकर 170 टन/माह किया गया।
सफलताएँ:
- 20–30% तक प्रदूषण में गिरावट
- 11% लागत में कमी
- विश्वसनीय आंकड़े व CEMS की मदद से निगरानी
- व्यापार व्यवस्था में पारदर्शिता
मुख्य चुनौतियाँ:
- निगरानी की कठिनाई: CEMS जैसे यंत्रों की उच्च लागत।
- बाजार में हेरफेर की आशंका: परमिट की जमाखोरी, कीमतों को प्रभावित कर सकती है।
- औद्योगिक असमानताएँ: हर क्षेत्र में प्रदूषण कम करने की लागत अलग।
- नीति में अस्थिरता: बार-बार नियम बदलने से निवेश पर असर पड़ता है।
आगे का रास्ता:
- अन्य शहरों में विस्तार: दिल्ली, अहमदाबाद आदि में पायलट की योजना।
- अधिक प्रदूषकों को शामिल करना: जैसे - सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx)।
- CEMS तकनीक में निवेश: विश्वसनीय और टैम्पर-प्रूफ प्रणाली आवश्यक।
- डायनामिक कैप तय करना: मौसम और उत्पादन के अनुसार सीमा तय करना।
- हितधारकों की भागीदारी: उद्योग, स्थानीय निकाय और जनता को जोड़ना।
निष्कर्ष:
सूरत ईटीएस मॉडल यह सिद्ध करता है कि बाजार-आधारित नीतियाँ आर्थिक विकास और पर्यावरणीय सुरक्षा दोनों को संतुलित कर सकती हैं। यदि इसे राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार दिया जाए, तो यह भारत के स्वच्छ वायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में अहम भूमिका निभा सकता है।