01 May, 2025
तेलंगाना में अनुसूचित जाति (SC) उप-वर्गीकरण
Wed 16 Apr, 2025
संदर्भ :
तेलंगाना ने तेलंगाना अनुसूचित जाति (आरक्षण का तर्कसंगतीकरण) अधिनियम, 2025 को लागू करके इतिहास रच दिया है। यह भारत का पहला राज्य बन गया है जिसने अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण किया है। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के 2024 के ‘स्टेट ऑफ पंजाब बनाम दविंदर सिंह’ निर्णय के बाद आया, जिसमें SC/ST उप-वर्गीकरण को संवैधानिक रूप से वैध माना गया।
इस अधिनियम के तहत, राज्य की मौजूदा 15% आरक्षण सीमा के भीतर अनुसूचित जातियों को तीन समूहों में विभाजित किया गया है, जो उनके सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन पर आधारित है। यह अब तक अनुसूचित जातियों को एकसमान समझने वाली नीति से एक महत्वपूर्ण बदलाव है।
उप-वर्गीकरण विवरण (Reservation Distribution):
समूह | उप-जातियों की संख्या | SC जनसंख्या (%) | आरक्षण (%) | वर्ग का विवरण |
समूह I | 15 | 3.29% | 1% | सर्वाधिक पिछड़े और वंचित |
समूह II |
18 |
62.75%
|
9% |
मध्यम रूप से लाभान्वित |
समूह III |
24 | 33.96% |
5% |
पर्याप्त लाभान्वित |
यह वर्गीकरण शमीम अख्तर आयोग की सिफारिशों पर आधारित है, जिसने 8,600 से अधिक समुदायों की अभिव्यक्तियों का विश्लेषण किया, जैसे शिक्षा, सरकारी योजनाओं की पहुंच, रोजगार आदि।
संवैधानिक और कानूनी आधार:
अनुच्छेद | प्रावधान |
अनुच्छेद 14 | तर्कसंगत वर्गीकरण की अनुमति देता है, जब तक कि उसका उद्देश्य स्पष्ट और तार्किक हो। |
अनुच्छेद 15(4) और 15(5) | सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान की अनुमति। |
अनुच्छेद 16(4) | पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की अनुमति देता है। |
अनुच्छेद 341(1) और (2) | SC की पहचान और सूची में बदलाव का अधिकार राष्ट्रपति और संसद को। |
पूर्व में, सुप्रीम कोर्ट के ई.वी. चिनैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2004) फैसले में कहा गया था कि अनुसूचित जातियाँ एक समरूप वर्ग हैं और उनके भीतर उप-वर्गीकरण असंवैधानिक है। लेकिन 2024 में दविंदर सिंह केस में इस निर्णय को पलट दिया गया और राज्यों को उप-वर्गीकरण की अनुमति दी गई, बशर्ते यह डेटा पर आधारित और राजनीतिक मकसद से रहित हो।
विवाद: समर्थन और विरोध में तर्क
समर्थन में तर्क | विरोध में तर्क |
सबसे पिछड़े वर्गों को आरक्षण का लाभ सुनिश्चित करना। | SC की ऐक्य भावना को तोड़ सकता है। |
क्रीमी लेयर समूहों के लाभ लेने की प्रवृत्ति पर रोक। | राजनीतिक लाभ के लिए दुरुपयोग की संभावना। |
डेटा आधारित लक्षित नीति। | सामाजिक न्याय के व्यापक उद्देश्य से ध्यान भटकाना। |
महत्वपूर्ण आरक्षण संबंधी निर्णय और अधिनियम
क्रम | निर्णय/अधिनियम | वर्ष | मुख्य बिंदु |
1 | संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम | 1951 | अनुच्छेद 15(4) जोड़ा गया। |
2 | इंद्रा साहनी केस (मंडल कमीशन) | 1992 | 27% OBC आरक्षण, क्रीमी लेयर, 50% सीमा तय। |
3 | केरल राज्य बनाम एन.एम. थॉमस | 1976 | अनुच्छेद 16(1) और 16(4) की व्याख्या। |
4 | एम. नागराज बनाम भारत संघ | 2006 | प्रमोशन में आरक्षण के लिए डेटा अनिवार्य। |
5 | संविधान (77वां संशोधन) अधिनियम | 1995 | SC/ST के लिए प्रमोशन में आरक्षण की अनुमति। |
6 | अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ | 2008 | उच्च शिक्षा में 27% OBC आरक्षण को वैध ठहराया। |
7 | संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम | 2019 | EWS के लिए 10% आरक्षण। |
8 | जर्नैल सिंह केस | 2018 | प्रमोशन में पिछड़ेपन के प्रमाण की आवश्यकता समाप्त। |
9 | मराठा आरक्षण केस | 2021 50% | सीमा को फिर से पुष्ट किया। |
10 | पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह | 2020 & 2024 | SC उप-वर्गीकरण को वैध ठहराया। |
निष्कर्ष:
तेलंगाना की यह पहल समानता की भावना को बनाए रखते हुए सामाजिक रूप से वंचित समुदायों को न्याय दिलाने की दिशा में एक साहसी कदम है। लेकिन यह जरूरी है कि यह नीति डेटा-संचालित हो और इससे राजनीतिक ध्रुवीकरण या दलित एकता में विभाजन न हो।