10 January, 2025
हिमनद झील विस्फोट
Mon 12 Aug, 2024
संदर्भ
हिमाचल प्रदेश विज्ञान प्रौद्योगिकी-पर्यावरण परिषद (HIMCOSTE) के जलवायु परिवर्तन केंद्र द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में विश्लेषण किए गए उपग्रह डेटा के अनुसार, सतलुज नदी के जलग्रहण क्षेत्र में हिमनद झीलों की संख्या 2019 में 562 से लगभग दोगुनी होकर 2023 में 1,048 हो गई है।
मुख्य बिंदु
- हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण हिमनदों के आकार में तेजी से कमी आने के कारण हिमाचल प्रदेश और तिब्बत के ट्रांस हिमालयी क्षेत्र में हिमोढ़ से बनी झीलों की संख्या में वृद्धि हुई है।
- जलवायु परिवर्तन ने पूरे हिमालयी क्षेत्र में हिमनदों के स्वास्थ्य को प्रभावित किया है। नतीजतन, हिमालयी भूभाग पर क्रायोस्फेरिक आवरण कम होता जा रहा है।
- यदि किसी कारणवश झीलें बेकाबू हो जाएं, तो हिमाचल प्रदेश की नदी घाटियों में हिमनद झीलों का जलस्तर बढ़ना विनाशकारी हो सकता है।
हिमनद झील के फटने से बाढ़ (Glacial Lake Outburst Flood -GLOF)
- यह एक विनाशकारी प्राकृतिक घटना है जिसमें एक हिमनद झील का बांध टूट जाता है और इससे बड़ी मात्रा में जल, बर्फ और मलबा अचानक नीचे की ओर बहता है। जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनदों के पिघलने की दर बढ़ने से यह घटना अधिक आम हो रही है।
- भारत, विशेषकर हिमालय क्षेत्र, हिमनद झील फटने के खतरे से सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है। उत्तराखंड में कई बार इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। उदाहरण: केदारनाथ त्रासदी, 2013, चमोली की ऋषिगंगा घाटी त्रासदी, 2021 एवं नंदा देवी त्रासदी, 2021 आदि
हिमनद झील फटने के कारण:
- जलवायु परिवर्तन: बढ़ते तापमान के कारण हिमनद तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे हिमनद झीलें बन रही हैं और उनका आकार बढ़ रहा है।
- अस्थिर बांध: हिमनद झीलों को रोकने वाले बांध अक्सर बर्फ, चट्टान और मलबे से बने होते हैं, जो कि अपरदन, पिघलने या भूकंपीय गतिविधि के कारण अस्थिर हो सकते हैं।
- तलछट: झील में तलछट जमा होने से पानी का दबाव बढ़ सकता है और बांध को अस्थिर कर सकता है।
हिमनद झील फटने के प्रभाव:
- जान-माल का नुकसान: अचानक आने वाली बाढ़ से बड़ी संख्या में लोगों की जान जाती है और संपत्ति का भी नुकसान होता है।
- बुनियादी ढांचे को नुकसान: सड़कें, पुल और अन्य बुनियादी ढांचे बह जाते हैं।
- कृषि संबंधी नुकसान: खेत और फसलें बर्बाद होती हैं।
- पर्यावरणीय प्रभाव: नदियों और नालों में गाद और मलबा भर जाता है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान होता है।
- समुदायों का विस्थापन: प्रभावित क्षेत्रों के लोगों को अपने घरों से पलायन करना पड़ता है।
हिमनद झील फटने को कैसे नियंत्रित किया जाए:
हिमनद झील फटने को पूरी तरह से रोकना मुश्किल है, लेकिन इसके प्रभावों को कम करने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं:
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: हिमनद झीलों की निगरानी करने और किसी भी अस्थिरता के संकेतों का पता लगाने के लिए उन्नत प्रणालियों का विकास करना।
- नियंत्रित जल-निकासी: हिमनद झीलों के जल स्तर को कम करने के लिए नियंत्रित जल निकासी माध्यमों का निर्माण करना।
- मजबूत बांधों का निर्माण: जहां संभव हो, प्राकृतिक बांधों को मजबूत करके उनकी स्थिरता को बढ़ाना।
- आपदा प्रबंधन: आपदा की स्थिति में लोगों को बचाने और प्रभावित क्षेत्रों में राहत और पुनर्वास कार्य करने के लिए योजनाएं बनाना।
- अलार्म सिस्टम: पारंपरिक अलार्म सिस्टम के स्थान पर स्मार्टफोन का उपयोग करने वाली आधुनिक संचार तकनीक प्रणाली का उपयोग किया जा सकता है।
- जलवायु परिवर्तन का मुकाबला: जलवायु परिवर्तन को कम करके हिमनदों के पिघलने की दर को कम करना।