12 November, 2024
'तेल उम्म आमेर' और 'चराइदेव मोइदम': यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल
Tue 30 Jul, 2024
संदर्भ
- विश्व धरोहर समिति द्वारा 'तेल उम्म आमेर' और असम के 'चराइदेव मोइदम' को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की ‘खतरे में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची’ तथा ‘विश्व धरोहर सूची’ में शामिल किया गया।
तेल उम्म आमेर (प्राचीन ईसाई मठ/सेंट हिलारियन परिसर)
- गाज़ा पट्टी में इजराइल और हमास के मध्य चल रहे संघर्ष से तेल उम्म आमेर सहित सांस्कृतिक स्थलों को काफी नुकसान पहुँचा है।
- स्थित: गाजा पट्टी (इजराइल और मिस्र के बीच भूमि का संकीर्ण टुकड़ा)
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: इसे हिलारियन द ग्रेट (291-371 ई.) द्वारा स्थापित किया गया था।
- महत्त्व: यह मिडिल ईस्ट में सबसे प्राचीन और सबसे बड़े मठवासी समुदायों में से एक माना जाता है एवं स्थापना काल से लेकर उमय्यद काल (661-750ई.) तक इसे अपने धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक गतिविधियों का केंद्र माना जाता रहा है।
- यूनेस्को की समिति ने इस स्थल को ‘अनंतिम संवर्द्धित संरक्षण’ (हेग कन्वेंशन, 1954 द्वारा स्थापित) प्रदान करने का निर्णय लिया।
असम के चराईदेव मोइदम (भारत का 43वां विश्व धरोहर स्थल)
- ऐतिहासिक महत्त्व: ये अहोम राजवंश के समाधि स्थल हैं।
- स्थापना: 1253 ई. में ‘किंग सुकफा’ ने की थी।
- उपनाम: ‘असम के पिरामिड’
अहोम साम्राज्य:
- संस्थापक: छोलुंग सुकफा
- अहोम राज्य बंधुआ मज़दूरों (Forced Labour) पर निर्भर था।
- मज़दूरी करने वालों को पाइक (Paik) कहा जाता था।
- स्थानीय प्रशासन: अहोम समाज कुलों या खेल में विभाजित थे, जिनका कई गाँवों पर नियंत्रित होता था।
अन्य संबंधित तथ्य:
- लाचित बोड़फुकन: अहोम साम्राज्य के सबसे प्रतापी सेनापति
- 'सराईघाट के युद्ध', 1671: बोड़फुकन के नेतृत्व में अहोम की सेना ने मुगल सेना को पराजित किया।
- लाचित बोड़फुकन स्वर्ण पदक: राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को प्रदान किया जाता है।
- बोरफुकन की 125 फुट की कांस्य प्रतिमा: जोरहाट (असम)