20 November, 2024
शास्त्रीय भाषा के मानदंडों में परिवर्तन
Thu 11 Jul, 2024
संदर्भ
- केंद्र सरकार ने शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के मानदंडों में संशोधन करने का निर्णय लिया है।
मुख्य बिंदु
- यह निर्णय 2023 में प्रस्तुत केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की भाषा विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।
भाषा विशेषज्ञ समिति:
- सदस्य: केंद्रीय गृह, संस्कृति मंत्रालय और चार से पांच भाषा विशेषज्ञ होते हैं।अध्यक्षता: 'साहित्य अकादमी' के अध्यक्ष द्वारा की जाती है।
शास्त्रीय भाषा के लिए मानदंड
- प्रारंभिक लेखन और ऐतिहासिक विवरणों की प्राचीनता: 1,500 से 2,000 ई.पू.
- साहित्यिक विरासत: भाषा के संदर्भ में प्राचीन साहित्य या ग्रंथों का एक संग्रह होना चाहिए जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता हो।
- मौलिकता: मूल साहित्यिक परंपरा होनी चाहिए और किसी अन्य भाषाई समुदाय से उधार नहीं ली गई हो।
- इसके बाद के रूपों या इसकी शाखाओं से विच्छिन्नता होनी चाहिए।
किसी भाषा के शास्त्रीय भाषा होने के लाभ
- उस भाषा के अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना
- संबंधित विद्वानों के लिए दो प्रमुख पुरस्कारों की शुरुआत
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से अनुरोध किया जा सकता है कि वह केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय भाषाओं के विद्वानों के लिए पेशेवर पद स्थापित करे।
शास्त्रीय भाषाएँ
- ये भाषाएँ भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हैं।
- "शास्त्रीय भाषाओं" की श्रेणी का गठन: 2004
- वर्तमान शास्त्रीय भाषाएं (6): तमिल (2004), संस्कृत (2005), कन्नड़ (2008), तेलुगु (2008), मलयालम (2013), ओडिया (2014)
- भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के तहत पाली, फ़ारसी और प्राकृत भाषाओं के साहित्यिक कार्यों को संरक्षित करने की भी सिफारिश की गई है।