डब्ल्यूआईपीओ संधि: आनुवंशिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण
 
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डब्ल्यूआईपीओ संधि: आनुवंशिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण

Sun 02 Jun, 2024

सन्दर्भ

  • लगभग 25 वर्ष की चर्चा और बातचीत के बाद हाल ही में जिनेवा स्थित डब्ल्यूआईपीओ मुख्यालय में आनुवंशिक संसाधनों और आनुवंशिक संसाधनों से जुड़े पारंपरिक ज्ञान से संबंधित एक ऐतिहासिक संधि हुई। 
  • इस संधि को 150 से अधिक देशों की आम सहमति से बहुपक्षीय मंचों पर अपनाया गया है।

 प्रमुख बिंदु

  • इसके अंतर्गत पेटेंट आवेदकों के लिए मूल देश या आनुवंशिक संसाधनों के स्रोत का प्रकटीकरण करना अनिवार्य होगा, यदि दावा किया गया आविष्कार उन सामग्रियों या संबंधित पारंपरिक ज्ञान पर आधारित है।
  • यह संधि भारतीय आनुवंशिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान को अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करेगी। हालाँकि ये वर्तमान में भारत में संरक्षित हैं, लेकिन उन देशों में इनके दुरुपयोग की संभावना है, जहाँ प्रकटीकरण दायित्व नहीं हैं।
  • वर्तमान पेटेंट कानून में ऐसा कोई अनिवार्य प्रावधान नहीं है जिसके तहत पेटेंट आवेदकों से उस स्थिति में उत्पत्ति के देश या स्रोत का खुलासा करने की अपेक्षा की जाए जहां आविष्कार आनुवंशिक संसाधनों पर आधारित हो।
  • वर्तमान में केवल 35 देशों में ही किसी न किसी रूप में प्रकटीकरण दायित्व हैं, जिनमें से अधिकांश अनिवार्य नहीं हैं तथा प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उनके पास उपयुक्त प्रतिबंध या उपाय भी नहीं हैं।
  • इस संधि के तहत विकसित देशों सहित अनुबंध करने वाले पक्षों को पेटेंट आवेदकों पर मूल स्थान के प्रकटीकरण के दायित्व को लागू करने के लिए अपने मौजूदा कानूनी ढांचे में परिवर्तन लाना होगा।
  • आनुवंशिक संसाधन (जीआर) औषधीय पौधों, कृषि फसलों और पशु नस्लों आदि में मौजूद होते हैं। आनुवंशिक संसाधनों को सीधे बौद्धिक संपदा के रूप में संरक्षित नहीं किया जा सकता है, लेकिन उनका उपयोग करके विकसित किए गए आविष्कारों को अक्सर पेटेंट के माध्यम से संरक्षित किया जा सकता है।
  • कुछ आनुवंशिक संसाधन पारंपरिक ज्ञान (ATK) से भी जुड़े हुए हैं, जो स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों द्वारा अक्सर पीढ़ियों से उपयोग और संरक्षण के माध्यम से होते हैं। इस ज्ञान का उपयोग कभी-कभी वैज्ञानिक अनुसंधान में किया जाता है और इस तरह, यह संरक्षित आविष्कार के विकास में योगदान दे सकता है।

भारत और वैश्विक दक्षिण के लिये  डब्ल्यूआईपीओ संधि की महत्ता

  • विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) संधि भारत और वैश्विक दक्षिण के लिए एक ‘महत्वपूर्ण जीत’ है, क्योंकि यह संधि आनुवंशिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान को अनधिकृत व्यावसायिक शोषण से बचाने के लिए एक कानूनी ढांचा स्थापित करके बायोपाइरेसी से निपटने में मदद करती है।
  • इसके अलावा यह संधि न केवल जैव विविधता की रक्षा और सुरक्षा करती है बल्कि पेटेंट प्रणाली में पारदर्शिता में वृद्धि करते हुए नवोन्‍मेषण को सुदृढ़ करती है। 

 पारंपरिक ज्ञान और आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित भारत की पहल 

  • पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी
  • पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2005
  • ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999
  • जैवविविधता अधिनियम, 2002
  • भौगोलिक संकेत (GI)
  • राष्ट्रीय जीन बैंक
  • पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम (PPV&FR) 2001
  • राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो की स्थापना
  • राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो की स्थापना
  • जैवविविधता पर कन्वेंशन में शामिल होना
  • नागोया प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर एवं पुष्टि करना
  • ट्रिप्स समझौता में शामिल होना इत्यादि। 

परीक्षापयोगी महत्वपूर्ण तथ्य

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन

  • गठन 1967
  • संयुक्त राष्ट्र की सबसे पुरानी एजेंसियों में से एक
  • उद्देश्य:रचनात्मक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और विश्व में बौद्धिक संपदा संरक्षण को बढ़ावा देना 
  • मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड
  • इसके सदस्यों में भारत, इटली, इजराइल, अफ्रीका, ऑस्ट्रिया, भूटान, ब्राजील, चीन, क्यूबा, मिस्र, पाकिस्तान, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकासशील और विकसित देश शामिल हैं।
  • प्रत्येक वर्ष 26 अप्रैल को विश्व बौद्धिक संपदा दिवस मनाया जाता है।

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