20 November, 2024
एक राष्ट्र एक चुनाव पर गठित समिति की रिपोर्ट
Sun 17 Mar, 2024
सन्दर्भ
- हाल ही में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की संभावना पर विचार करने के लिए बनी उच्चस्तरीय समिति ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।
पृष्ठभूमि
- एक राष्ट्र एक चुनाव का विचार निर्वाचन आयोग ने पहली बार वर्ष 1983 में प्रस्तुत किया था।
- गौरतलब है कि वर्ष 1967 तक भारत में एक साथ चुनाव आयोजित किये जाते थे। लोकसभा के प्रथम आम चुनाव और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव 1951-52 में एक साथ आयोजित कराये गए थे। यह पैटर्न वर्ष 1957, 1962 और 1967 में आयोजित अगले तीन आम चुनावों में भी जारी रहा।
- किंतु वर्ष 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं के समय-पूर्व विघटन के कारण यह चक्र बाधित हो गया था। एक लंबे अंतराल के पश्चात इसकी पुनः सम्भावना तलाश करने के लिए सरकार द्वारा रामनाथ कोविंद समिति का गठन किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली इस समिति ने सभी पक्षों, जानकारों और शोधकर्ताओं से बातचीत के बाद ये रिपोर्ट तैयार कर ली है।
- इस रिपोर्ट में आने वाले समय में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ-साथ नगरपालिकाओं और पंचायत चुनाव करवाने से जुड़ी सिफारिशें दी गई हैं।
- 191 दिनों में तैयार इस 18,626 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार समिति के साथ साझा किए थे।
- रिपोर्ट के अनुसार केवल 15 राजनीतिक दलों को छोड़कर शेष 32 दलों ने इस चुनाव प्रणाली का समर्थन किया ।
समिति में सम्मिलित सदस्य
- इस समिति में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और चीफ़ विजिलेंस कमिश्नर संजय कोठारी शामिल थे।
- इसके अलावा विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर क़ानून राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल और डॉ. नितेन चंद्रा समिति में शामिल थे।
समिति की मुख्य सिफारिशें
- एक साथ चुनाव के चक्र को बहाल करने के लिए क़ानूनी रूप से तंत्र बनाना करना चाहिए।
- चुनाव दो चरणों में कराए जाने चाहिए। पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव कराए जाएं। दूसरे चरण में नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव हों।
- इन्हें पहले चरण के चुनावों के साथ इस तरह कोऑर्डिनेट किया जाए कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव के सौ दिनों के भीतर इन्हें पूरा किया जाए।
- इसके लिए निर्वाचन आयोग की सलाह से एक मतदाता सूची और एक मतदाता फोटो पहचान पत्र की व्यवस्था की जाए। साथ ही इसके लिए संविधान में ज़रूरी संशोधन किए जाएं।
- समिति की सिफ़ारिश के अनुसार त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में नए सदन के गठन के लिए फिर से चुनाव कराए जा सकते हैं।
- इस स्थिति में नए लोकसभा (या विधानसभा) का कार्यकाल, पहले की लोकसभा (या विधानसभा) की बाकी बची अवधि के लिए ही होगा। इसके बाद सदन को भंग माना जाएगा।
- इन चुनावों को 'मध्यावधि चुनाव' कहा जाएगा, वहीं पांच साल के कार्यकाल के ख़त्म होने के बाद होने वाले चुनावों को 'आम चुनाव' कहा जाएगा।
- आम चुनावों के बाद लोकसभा की पहली बैठक के दिन राष्ट्रपति एक अधिसूचना के ज़रिए इस अनुछेद के प्रावधान को लागू कर सकते हैं।इस दिन को "निर्धारित तिथि" कहा जाएगा।
- इस तिथि के बाद, लोकसभा का कार्यकाल ख़त्म होने से पहले विधानसभाओं का कार्यकाल बाद की लोकसभा के आम चुनावों तक ख़त्म होने वाली अवधि के लिए ही होगा
- इसके बाद लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के सभी एक साथ चुनाव कराए जा सकेंगे।
- एक समूह बनाया जाए जो समिति की सिफारिशों के कार्यान्वयन पर ध्यान दे।
- लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए ज़रूरी लॉजिस्टिक्स, जैसे ईवीएम मशीनों और वीवीपीएटी खरीद, मतदान कर्मियों और सुरक्षा बलों की तैनाती और अन्य व्यवस्था करने के लिए निर्वाचन आयोग पहले से योजना और अनुमान तैयार करे।
- वहीं नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनावों के लिए ये काम राज्य निर्वाचन आयोग करे।
'एक राष्ट्र, एक चुनाव' का विरोध करने वाले राजनीतिक दलों के तर्क
- इसे अपनाना संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन होगा।
- ये प्रक्रिया अलोकतांत्रिक, संघीय ढांचे के विपरीत, क्षेत्रीय दलों को अलग-अलग करने वाला और राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ाने का कार्य करेगी।
- इसके अलावा ये व्यवस्था राष्ट्रपति शासन की ओर ले जाने का मार्ग प्रशस्त करेगी।
एक साथ चुनाव कराने के लाभ
- शासन विकर्षणों को कम करना
- आदर्श आचार संहिता का प्रभाव
- राजनीतिक भ्रष्टाचार को संबोधित करना
- लागत बचत और चुनावी अवसंरचना
- कानून प्रवर्तन संसाधनों का इष्टतम उपयोग
- नागरिकों को सुविधा
- राज्य सरकारों के लिये वित्तीय स्थिरता
- ‘हॉर्स-ट्रेडिंग’ पर अंकुश