20 November, 2024
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA)
Tue 12 Mar, 2024
सन्दर्भ
- केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 (सीएए) के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। इसके साथ ही सीएए कानून देशभर में लागू हो गया है।
प्रमुख बिंदु
- सीएए का फुल फॉर्म नागरिकता (संशोधन) अधिनियम है। नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 एक ऐसा कानून है, जिसके तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले तीन पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में आने वाले छह धार्मिक अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
- भारतीय नागरिकता केवल उन्हें प्रदान किये जाने का प्रावधान किया गया है जो बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में शरण लिए हुए थे।
- इन तीन देशों के लोग ही नागरिकता के लिए आवेदन करने के योग्य होंगे।
पात्रता एवं मानदण्ड
- गौरतलब है कि सीएए स्वचालित रूप से किसी को नागरिकता प्रदान नहीं करता है।
- यह उन लोगों की श्रेणी को संशोधित करता है जो विशिष्ट शर्तों के तहत आवेदकों को “अवैध प्रवासी” की परिभाषा से छूट देकर नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं -
- आवेदक को हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय से संबंधित होना चाहिए और अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से होना चाहिए।
- उन्हें अपने देश में धार्मिक उत्पीड़न के डर से 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश करना होगा।
- उन्हें यह सिद्ध करना होगा कि वे पांच वर्ष या उससे अधिक समय से भारत में रह रहे हैं।
- उन्हें यह भी प्रदर्शित करना होगा कि वे धार्मिक उत्पीड़न के कारण अपने देश से भाग गए हैं।
- इसके अलावा उन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची की भाषाएँ बोलनी होंगी और नागरिक संहिता 1955 की तीसरी अनुसूची की आवश्यकताओं को पूरा करना होगा।
- इन मानदंडों को पूरा करने के बाद, आवेदक भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने के पात्र होंगे, लेकिन अंतिम निर्णय भारत सरकार का होगा।
पृष्ठभूमि
- नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019, दिसंबर 2019 में संसद में पारित किया गया।
- इसके बाद राष्ट्रपति से सीएए कानून को मंजूरी मिल गई थी।
- हालांकि राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद देश के विभिन्न राज्यों में सीएए को लेकर विरोध प्रदर्शन भी किया गया।
CAA विवादित क्यों रहा ?
- एक विशेष समुदाय (मुस्लिम समुदाय) को लक्षित करना
- उत्तर-पूर्व के मुद्दे (यह कानून वर्ष 1985 के असम समझौते का खंडन करता है, जिसमें कहा गया है कि 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से आने वाले अवैध प्रवासियों को चाहे वे किसी भी धर्म के हों निर्वासित कर दिया जाएगा।)
- मौलिक अधिकारों के विरुद्ध( अनुच्छेद 14 एवं प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।)
- प्रकृति में भेदभावपूर्ण (अन्य शरणार्थियों को यथा श्रीलंका के तमिल और म्याँमार के हिंदू रोहिंग्या को शामिल न किया जाना)
- द्विपक्षीय संबंधों में बाधा (यह कानून तीन देशों यथा;बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान में हो रहे धार्मिक उत्पीड़न से सम्बंधित है ।)
सरकार का स्टैंड
- यह कानून मुसलमानों के खिलाफ नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य पड़ोसी देशों के सताए हुए अल्पसंख्यक समुदायों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए एक कानूनी मार्ग प्रदान करना है।
- वहीं कुछ समूहों के लिए उनके उत्पीड़न की प्रकृति और स्थायित्व के आधार पर गैर-समावेश नीति का पालन करना है।
- यह कानून भारतीय नागरिकों पर लागू नहीं होता है। फलस्वरूप यह किसी भी तरह से किसी भी भारतीय नागरिक के अधिकार को समाप्त या कम नहीं करता है।
- इसके अलावा पूर्वोत्तर भारत से संबंधित मुद्दों को सुलझाने का प्रयास किया जा रहा है।
- इस कानून के अंतर्गत संविधान की छठी अनुसूची के तहत क्षेत्रों और इनर लाइन परमिट शासन के तहत आने वाले क्षेत्रों को शामिल करने से क्षेत्र की स्वदेशी और आदिवासी आबादी की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
आगे की राह
- अतः गृह मंत्रालय द्वारा संविधान की मूल भावना को ध्यान में रखते हुए उक्त चिंताओं के निराकरण हेतु उचित कदम उठाए जाने चाहिए।