12 November, 2024
वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023
Tue 20 Feb, 2024
सन्दर्भ
- सुप्रीम कोर्ट वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवायी कर रहा है।
- गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस हेतु राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों को टीएन गोदावर्मन थिरुमलपाद बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में 1996 के फैसले में निर्धारित "वन" की परिभाषा के अनुसार कार्य करने का निर्देश दिया ।
कोर्ट के आदेश के महत्वपूर्ण बिंदु
- वन भूमि पर चिड़ियाघर खोलने या 'सफारी' शुरू करने के किसी भी नए प्रस्ताव के लिए अब न्यायालय की मंजूरी की आवश्यकता होगी।
- राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को उनके अधिकार क्षेत्र के भीतर आने वाली वन भूमि का विवरण केंद्र को इस वर्ष 31 मार्च तक मुहैया कराने का निर्देश दिया।
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की ओर से प्रदान किए जाने वाले 'वन' जैसे क्षेत्र, अवर्गीकृत वन भूमि और सामुदायिक वन भूमि' संबंधी विवरण को 15 अप्रैल तक अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराएगा।
- पीठ ने अपने अंतरिम आदेश में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से टी एन गोदावर्मन तिरुमुलपाद बनाम भारत संघ मामले में 1996 के फैसले में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित 'वन' की परिभाषा के अनुसार कार्य करने को कहा।
वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023
- सरकार के अनुसार, विधेयक का प्राथमिक उद्देश्य गोदावर्मन मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से संबंधित किसी भी अनिश्चितता को खत्म करना है।
- इसका उद्देश्य 'वन' की परिभाषा पर स्पष्टता प्रदान करना और कुछ प्रकार की वन भूमि को छूट देना है।
- इस विधेयक में अंतरराष्ट्रीय सीमाओं या नियंत्रण रेखा (एलओसी) के साथ 100 किमी की दूरी के भीतर 10 हेक्टेयर तक राष्ट्रीय महत्व और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित रणनीतिक रैखिक परियोजनाओं के निर्माण के लिए उपयोग करने का प्रस्ताव है।
- रेलवे लाइन या सरकार की ओर से प्रबंधित सार्वजनिक सड़क के किनारे स्थित 0.10 हेक्टेयर तक के वन; निजी भूमि पर वृक्षारोपण जो पूर्व वन मंजूरी प्राप्त करने की आवश्यकता से वन के रूप में वर्गीकृत नहीं है।
विरोध के बिंदु
- पर्यावरण से जुड़े कार्यकर्ताओं के बीच इस बात को लेकर चिंता है कि यह संभावित रूप से हिमालय, ट्रांस-हिमालयी और उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण वनों को पूर्व वन मंजूरी प्राप्त करने से बाहर कर देगा।
- इससे ये क्षेत्र जो विभिन्न प्रकार की स्थानिक प्रजातियों के घर हैं, उन प्रजातियों के लिए सुरक्षित नहीं रह जायेंगे। साथ ही इससे जैव विविधता के लिए भी खतरा उत्पन्न होगा।
- अधिकांश वन क्षेत्र पहले से ही अस्थिर बुनियादी ढांचे के विकास और चरम मौसम की घटनाओं के प्रति संवेदनशील है, और उन्हें वन मंजूरी आवश्यकताओं से छूट देने से केवल उनकी भेद्यता बढ़ेगी।
- वन अधिकार समूहों का तर्क है कि सरकार जो छूट प्रदान करना चाहती है वह 2006 के वन अधिकार अधिनियम के खिलाफ है।
परीक्षापयोगी तथ्य
- टी एन गोदावर्मन तिरुमुलपाद बनाम भारत संघ एवं अन्य केस, 1996
- वर्ष 1996 में एक पूर्व वन अधिकारी टी.एन. गोदावर्मन ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की जिसके माध्यम से उन्होंने उचित पर्यावरणीय मंजूरी के बिना किए जा रहे खनन, उत्खनन और निर्माण जैसी विभिन्न विकासात्मक गतिविधियों के कारण वन भूमि के क्षरण के बारे में माननीय न्यायालय का ध्यान आकृष्ट किया था।
- केस में मुख्य बहस इस मुद्दे पर केन्द्रित थी कि क्या हमारे देश में में जंगलों को गैर-वन उद्देश्यों के लिए मोड़ा जा सकता है यदि हां, तो किन परिस्थितियों में।
- इस केस में अदालत ने माना कि जंगलों को गैर-वन उद्देश्यों के लिए मोड़ा जा सकता है, लेकिन केवल कुछ शर्तों के तहत और आवश्यक पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करने के बाद।
- यह मामला भारत के पर्यावरण न्यायशास्त्र को आकार देने में महत्वपूर्ण माना जाता है।