01 December, 2024
चुनावी बांड योजना
Thu 15 Feb, 2024
सन्दर्भ
- सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता पर अपना फैसला सुनाते हुए इसे असंवैधानिक बताया है ।
पृष्ठभूमि
- इस योजना को सरकार ने 2 जनवरी, 2018 को अधिसूचित किया था।
- इसका उद्देश्य राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाना था और इसे राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चुनावी चंदे या दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था।
- चुनावी बॉन्ड भारत का कोई भी नागरिक अकेले या किसी और के साथ मिलकर खरीद सकता है।
- साथ ही इसे देश में ही निगमित या स्थापित किसी इकाई द्वारा भी खरीदा जा सकता है।
प्रमुख बिंदु
- सुप्रीम कोर्ट के अनुसार इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन है।
- इसी के साथ शीर्ष अदालत ने भारतीय स्टेट बैंक को अप्रैल 2019 से अब तक बेचे गए इलेक्टोरल बॉन्ड का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
- गौरतलब है कि फ्री और फेयर इलेक्शन के लिए सबसे जरूरी बात होती है कि वोटर को राजनीतिक दल और उसके उम्मीदवार के बारे में पूरी जानकारी रहे।
- केवल इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले भी यही कहते हैं कि चुनावी सुचिता (इलेक्टोरल सेंक्टिटी) बनी रहे, इसलिए ज्यादा से ज्यादा पारदर्शिता की जरूरत है।
न्यायधीशों का मत
- इस फैसले को लेकर सीजेआई के सभी जजों की एक ही राय है।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने पिछले 2 नवंबर 2023 को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
- गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय की पांच जजों की संविधान पीठ ने दो फैसले दिए हैं।
- दोनों फैसलों का निष्कर्ष समान है, यानी सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक बताया है।
परीक्षापयोगी तथ्य
- अनुच्छेद 19 (1) (a): बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रत्येक नागरिक को भाषण द्वारा लेखन, मुद्रण, चित्र या किसी अन्य तरीके से स्वतंत्र रूप से किसी के विचारों और विश्वासों को व्यक्त करने का अधिकार प्रदान करती है।