01 December, 2024
ग्रेप्स -3 प्रयोग
Tue 06 Feb, 2024
सन्दर्भ
- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के ग्रेप्स-3 प्रयोग ने कॉस्मिक किरण भौतिकी के क्षेत्र में एक नया पहलू उजागर किया है।
प्रमुख बिंदु
- भारत के ऊटी में स्थित GRAPES-3 प्रयोग टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुंबई, भारत और ओसाका सिटी यूनिवर्सिटी, ओसाका, जापान के सहयोग से शुरू हुआ।
- हाल ही में इसके शोधकर्ताओं ने लगभग 166 टेरा-इलेक्ट्रॉन-वोल्ट (टीईवी) के ऊर्जा स्तर पर कॉस्मिक-रे प्रोटॉन स्पेक्ट्रम में एक विशिष्ट विशेषता की पहचान की है।
- यह 50 टीईवी से लेकर एक पेटा-इलेक्ट्रॉन-वोल्ट (पीईवी) से थोड़ा अधिक की माप सीमा तक फैला हुआ है।
- ये ब्रह्मांडीय किरणों की उत्पत्ति, उनकी त्वरण प्रक्रियाओं और आकाशगंगा के भीतर उनके मूवमेंट की हमारी समझ में संभावित बदलावों को जन्म देता है।
उद्देश्य
- आकाशगंगा और उससे आगे >1014 eV ब्रह्मांडीय किरणों की उत्पत्ति , त्वरण और प्रसार का अध्ययन करना ।
- ब्रह्मांडीय किरणों के ऊर्जा स्पेक्ट्रम में "Knee" का अस्तित्व समझना ।
- ब्रह्मांड में उच्चतम ऊर्जा (~1020 eV) ब्रह्मांडीय किरणों के उत्पादन का अध्ययन करना।
- न्यूट्रॉन सितारों और अन्य कॉम्पैक्ट वस्तुओं से मल्टी-टीईवी γ-किरणों के खगोल विज्ञान का अध्ययन करना ।
परीक्षापयोगी तथ्य
कॉस्मिक किरणें
- कॉस्मिक किरणों को ब्रह्मांड में सबसे ऊर्जावान कण माना जाता है।ये बाहरी अंतरिक्ष में उत्पन्न होते हैं और छिटक कर पृथ्वी पर आ जाते हैं।
- लगभग 90 % ब्रह्माण्ड किरण (कण) प्रोटॉन होते हैं; लगभग 10% हीलियम के नाभिक होते हैं; तथा भारी तत्व एवं इलेक्ट्रोन्स की संख्या 1% से कम होती है।
- इन किरणों की खोज एक शताब्दी से भी पहले हुई थी। कॉस्मिक किरण अन्वेषण का इतिहास विक्टर हेस की 1912 की खोज से मिलता है, जिसके लिए उन्हें 1936 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था।